उन्होंने अपनी इन्द्रियों तथा उनके विषयों पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लिया और इस तरह अपने मन को चारों ओर से खींच कर भगवान् के रूप पर स्थिर कर दिया।
तात्पर्य
यहाँ पर ध्यान के यौगिक नियमों की स्पष्ट व्याख्या की गई है। मनुष्य को मन अन्यत्र न लगाकर भगवान् के स्वरूप पर स्थिर करना होता है। इसका यह अर्थ नहीं कि किसी निर्गुण वस्तु में ध्यान केन्द्रित किया जाये या उसका ध्यान किया जाये। ऐसा करना समय का अपव्यय मात्र है, क्योंकि यह अनावश्यक रूप से कष्टदायक है जैसाकि भगवद्गीता में कहा गया है।
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