एकदा सुरुचे: पुत्रमङ्कमारोप्य लालयन् ।
उत्तमं नारुरुक्षन्तं ध्रुवं राजाभ्यनन्दत ॥ ९ ॥
शब्दार्थ
एकदा—एक बार; सुरुचे:—सुरुचि के; पुत्रम्—पुत्र को; अङ्कम्—गोद में; आरोप्य—बैठा कर; लालयन्—दुलारते हुए; उत्तमम्—उत्तम; न—नहीं; आरुरुक्षन्तम्—चढऩे का प्रयास करता; ध्रुवम्—ध्रुव का; राजा—राजा ने; अभ्यनन्दत—स्वागत किया ।.
अनुवाद
एक बार राजा उत्तानपाद सुरुचि के पुत्र उत्तम को अपनी गोद में लेकर सहला रहे थे। ध्रुव महाराज भी राजा की गोद में चढऩे का प्रयास कर रहे थे, किन्तु राजा ने उन्हें अधिक दुलार नहीं दिया।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥