ध्रुव महाराज का भगवान् सम्बधी ज्ञान पूर्ण था। वेदों में कहा गया है—यस्मिन् विज्ञाते सर्वमेवं विज्ञातं भवति—भगवान् की दिव्य अहैतुकी कृपा से प्राप्त ज्ञान इतना पूर्ण होता है कि भक्तगण उसी ज्ञान से भगवान् की विभिन्न सृष्टियों से परिचित हो जाते हैं। ध्रुव महाराज के समक्ष क्षीरोदकशायी विष्णु उपस्थित थे। वे भगवान् के अन्य दो रूपों—गर्भोदकशायी विष्णु तथा कारणोदकशायी (महा) विष्णु को भी समझ सकते थे। महाविष्णु के सम्बन्ध में ब्रह्म-संहिता (५.४८) का कथन है— यस्यैकनिश्वसितकालमथावलम्ब्य जीवन्ति लोमविलजा जगदण्डनाथा:।
विष्णुर्महान् स इह यस्य कलाविशेषो गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥
प्रत्येक कल्प के अन्त में जब समस्त लोकों का लय हो जाता है, तो प्रत्येक वस्तु गर्भोदकशायी विष्णु के शरीर में प्रवेश करती है, जो भगवान् के ही अन्य रूप शेषनाग की गोद में शयन करते हैं। जो भक्त नहीं हैं, वे विष्णु के विभिन्न रूपों तथा सृष्टि के प्रति उनकी स्थितियोंके विषय में कुछ नहीं समझ सकते। कभी-कभी नास्तिक लोग तर्क करते हैं, “भला गर्भोदकशायी विष्णु की नाभि से पुष्पदण्ड किस प्रकार फूट कर निकल सकता है?” वे शास्त्रों के सभी वचनों को कहानी मानते हैं। परम सत्य के विषय में अनुभवहीन होने तथा प्रमाण को स्वीकार करने में हिचक के कारण वे अधिकाधिक नास्तिक बनते जाते हैं; वे भगवान् को नहीं समझ पाते। किन्तु ध्रुव महाराज जैसा भक्त भगवत्कृपा से भगवान् के विभिन्न रूपों एवं उनके पदों को जानता रहता है। कहा जाता है कि जिस पर तनिक भी भगवत्कृपा होती है, वह उनकी महिमा को समझ सकता है, अन्य लोग परम सत्य के विषय में चिन्तन करते रहते हैं किन्तु वे भगवान् को नहीं समझ पाते हैं। दूसरे शब्दों में, जब तक मनुष्य किसी भक्त के सम्पर्क में नहीं आता, तब तक वह दिव्य रूप या आध्यात्मिक जगत तथा इसके दिव्य कार्यकलापों को नहीं समझ सकता।