श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 9: ध्रुव महाराज का घर लौटना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  4.9.23 
त्वद्भ्रातर्युत्तमे नष्टे मृगयायां तु तन्मना: ।
अन्वेषन्ती वनं माता दावाग्निं सा प्रवेक्ष्यति ॥ २३ ॥
 
शब्दार्थ
त्वत्—तुम्हारा; भ्रातरि—भ्राता; उत्तमे—उत्तम; नष्टे—मारे जाने पर; मृगयायाम्—शिकार में; तु—तब; तत्-मना:—अत्यन्त शोकाकुल; अन्वेषन्ती—ढूँढते हुए; वनम्—जंगल में; माता—माता; दाव-अग्निम्—जंगल की अग्नि में; सा—वह; प्रवेक्ष्यति—प्रवेश करेगी ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् ने आगे कहा : निकट भविष्य में तुम्हारा भाई उत्तम जंगल में शिकार करने जाएगा और जब वह शिकार में मग्न रहेगा तो मार डाला जाएगा। तुम्हारी विमाता सुरुचि अपने पुत्र की मृत्यु से पागल होकर उसकी खोज करने जंगल में जाएगी, किन्तु वहाँ वह दावाग्नि में मारी जाएगी।
 
तात्पर्य
 ध्रुव महाराज जंगल में भगवान् की खोज करने आये थे और उनके मन में अपनी विमाता से प्रतिशोध लेने की भावना थी। विमाता ने ध्रुव का अपमान किया था, जो कोई सामान्य व्यक्ति न थे, वरन् एक महान् वैष्णव थे। एक वैष्णव के चरणकमलों के प्रति किया गया अपराध संसार में सबसे बड़ा अपराध है। ध्रुव महाराज का अपमान करने के कारण सुरुचि अपने पुत्र की मृत्यु के शोक से पागल होगी और दावाग्नि में प्रवेश करेगी जिससे उसका जीवन समाप्त हो जाएगा। इसका विशेष उल्लेख भगवान् ने ध्रुव से किया था, क्योंकि वे अपनी विमाता से प्रतिशोध लेने पर दृढ़ थे। इससे हमें यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कि भूलकर भी हम किसी वैष्णव को अपमानित न करें। हमें न केवल किसी वैष्णव का ही वरन् किसी का भी बिना कारण के अपमान नहीं करना चाहिए। जब सुरुचि ने ध्रुव महाराज का अपमान किया था, तो वे एक नन्हें से बालक थे। निस्सन्देह, उसे पता न था कि ध्रुव एक जाने-माने वैष्णव थे, अत: उसने अनजाने में अपराध किया था। जब कोई अनजान में किसी वैष्णव की सेवा करता है, तो भी उसका फल अच्छा होता है। श्रीभगवान् वैष्णव का विशेष पक्षपात करते हैं। वैष्णव को प्रसन्न या अप्रसन्न करने से परमेश्वर की प्रसन्नता तथा नाराजगी पर प्रभाव पड़ता है। श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर ने अपने गुरु की अष्टपदी प्रार्थना में कहा है—यस्य प्रसादाद् भगवत् प्रसाद:—मनुष्य द्वारा शुद्ध वैष्णव रूप गुरु को प्रसन्न करने पर परमेश्वर प्रसन्न होता है, किन्तु यदि वह गुरु को नाराज कर दे तो पता नहीं उसका क्या होगा।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥