श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 9: ध्रुव महाराज का घर लौटना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  4.9.37 
आकर्ण्यात्मजमायान्तं सम्परेत्य यथागतम् ।
राजा न श्रद्दधे भद्रमभद्रस्य कुतो मम ॥ ३७ ॥
 
शब्दार्थ
आकर्ण्य—सुनकर; आत्म-जम्—अपना पुत्र; आयान्तम्—आते हुए; सम्परेत्य—मरने के बाद; यथा—जिस प्रकार; आगतम्— वापस आया हुआ; राजा—राजा उत्तानपाद; न—नहीं; श्रद्दधे—विश्वास हुआ; भद्रम्—कल्याण; अभद्रस्य—अशुभ का; कुत:—कहाँ से; मम—मेरा ।.
 
अनुवाद
 
 जब राजा उत्तानपाद ने सुना कि उसका पुत्र ध्रुव घर वापस आ रहा है, मानो मृत्यु के पश्चात् पुनर्जीवित हो रहा हो, तो उसे इस समाचार पर विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उसे सन्देह था कि यह हो कैसे सकता है। उसने अपने को अत्यन्त अभागा समझ लिया था, अत: उसने सोचा कि ऐसा सौभाग्य उसे कहाँ नसीब हो सकता है?
 
तात्पर्य
 पाँच वर्ष के बालक ध्रुव महाराज तपस्या के लिए जंगल चले गये और राजा को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतनी अल्प आयु का बालक जंगल में रह सकता है। उसे पक्का विश्वास था कि ध्रुव मर चुका है। अत: उसे इस समाचार पर विश्वास ही नहीं हुआ कि ध्रुव महाराज घर वापस आ रहे हैं। उसके लिए यह समाचार मानो यह कह रहा हो कि एक मृत व्यक्ति वापस आ रहा है, इसलिए उसे विश्वास नहीं हो रहा था। ध्रुव महाराज के जंगल चले जाने के बाद राजा उत्तानपाद सोचता रहा कि उसी के कारण ध्रुव महाराज जंगल गये हैं, अत: वह अपने को सबसे अभागा समझ रहा था। अत: भले ही उसका खोया हुआ पुत्र मृत्यु के राज्य से वापस आ रहा था, किन्तु अपने को अत्यन्त पापी समझ लेने के कारण वह सोच रहा था कि उसके इतने भाग्य कहाँ कि खोया पुत्र वापस आ जाये।
 
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