ध्रुव महाराज को एक उपवन के निकट पहुँचा देखकर राजा उत्तानपाद तुरन्त अपने रथ से नीचे उतर आये। वे अपने पुत्र ध्रुव को देखने के लिए दीर्घकाल से अत्यन्त उत्सुक थे, अत: वे अत्यन्त प्रेमवश दीर्घकाल से खोये अपने पुत्र का आलिंगन करने के लिए आगे बढ़े। लम्बी लम्बी साँसें भरते हुए राजा ने उनको अपने दोनों बाहुओं में भर लिया। किन्तु ध्रुव महाराज पहले जैसे न थे; वे भगवान् के चरणकमलों के स्पर्श से आध्यात्मिक उन्नति मिलने से पूर्ण रूप से पवित्र हो चुके थे।
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