श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 9: ध्रुव महाराज का घर लौटना  »  श्लोक 49
 
 
श्लोक  4.9.49 
सुनीतिरस्य जननी प्राणेभ्योऽपि प्रियं सुतम् ।
उपगुह्य जहावाधिं तदङ्गस्पर्शनिर्वृता ॥ ४९ ॥
 
शब्दार्थ
सुनीति:—सुनीति, ध्रुव की असली माता; अस्य—उसकी; जननी—माता; प्राणेभ्य:—प्राणवायु से बढक़र; अपि—भी; प्रियम्—प्रिय; सुतम्—पुत्र को; उपगुह्य—गले लगा कर; जहौ—त्याग दिया; आधिम्—सारा शोक; तत्-अङ्ग—उसका शरीर; स्पर्श—छूकर; निर्वृता—सन्तुष्ट ।.
 
अनुवाद
 
 ध्रुव महाराज की असली माता सुनीति ने अपने पुत्र के कोमल शरीर को गले लगा लिया, क्योंकि वह उसे अपने प्राणों से भी अधिक प्यारा था। इस प्रकार वह सारा भौतिक शोक भूल गई, क्योंकि वह परम प्रसन्न थी।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥