पय:—दूध; स्तनाभ्याम्—दोनों स्तनों से; सुस्राव—बहने लगा; नेत्र-जै:—नेत्रों से; सलिलै:—अश्रुओं के द्वारा; शिवै:—शुभ; तदा—उस समय; अभिषिच्यमानाभ्याम्—भीग कर; वीर—हे विदुर; वीर-सुव:—वीर को जन्म देनेवाली माता का; मुहु:— लगातार ।.
अनुवाद
हे विदुर, सुनीति एक वीर की माता थी। उसके अश्रुओं ने उसके स्तनों से बहनेवाले दूध की धारा के साथ मिलकर ध्रुव महाराज के सार शरीर को भिगो दिया। यह परम मांगलिक लक्षण था।
तात्पर्य
जब देवों की स्थापना की जाती है, तो उन्हें दुग्ध, दधि तथा जल से स्नान कराया जाता है और यह संस्कार अभिषेक उत्सव कहलाता है। इस श्लोक में यह विशेष उल्लेख है कि सुनीति के नेत्रों से बहकर आनेवाले अश्रु सर्वकल्याणकारी थे। अपनी प्रिय माँ द्वारा किये गये इस अभिषेक उत्सव की कल्याणप्रदता इस बात की सूचक थी कि निकट भविष्य में ध्रुव महाराज को उनके पिता का सिंहासन मिलेगा ध्रुव महाराज के गृहत्याग की कथा यह है कि उनके पिता ने उन्हें अपनी गोद में बैठाने से मना किया, तो ध्रुव ने दृढ़ संकल्प किया कि जब तक उन्हें पिता का सिंहासन प्राप्त नहीं होगा वे घर नहीं आयेंगे। अब उनकी माता द्वारा सम्पन्न यह अभिषेकोत्सव इसका सूचक था कि वे महाराज उत्तानपाद का स्थान ग्रहण करनेवाले हैं।
इस श्लोक में आगत वीरसुव: शब्द भी महत्त्वपूर्ण है, जिसका अर्थ है “वीर की माता” और यह ध्रुव की माता के लिए प्रयुक्त है। दुनिया में अनेक वीर हैं, किन्तु ध्रुव महाराज से उनकी कोई समता नहीं, क्योंकि वे न केवल इस ब्रह्माण्ड के महान् भक्त भी थे। भक्त एक महान् वीर भी होता है, क्योंकि वह माया के प्रभाव को जीत लेता है। जब भगवान् चैतन्य ने रामानन्द राय से संसार के सबसे प्रसिद्ध मनुष्य का नाम पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि जो भी भगवान् का महान् भक्त है, वही सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति माना जा सकता है।
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