चूत-पल्लव—आम की पत्तियों से; वास:—वस्त्र; स्रक्—फूल की मालाएँ; मुक्ता-दाम—मोती की लड़ें; विलम्बिभि:— लटकती हुई; उपस्कृतम्—सुसज्जित; प्रति-द्वारम्—प्रत्येक द्वार पर; अपाम्—जल से पूर्ण; कुम्भै:—जलपात्रों से; स-दीपकै:— जलते हुए दीपों से ।.
अनुवाद
द्वार-द्वार पर जलते हुए दीपक और तरह-तरह के रंगीन वस्त्र, मोती की लड़ों, पुष्पहारों तथा लटकती आम की पत्तियों से सज्जित बड़े-बड़े जल के कलश रखे हुए थे।
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