श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 9: ध्रुव महाराज का घर लौटना  »  श्लोक 57
 
 
श्लोक  4.9.57 
मृष्टचत्वररथ्याट्टमार्गं चन्दनचर्चितम् ।
लाजाक्षतै: पुष्पफलैस्तण्डुलैर्बलिभिर्युतम् ॥ ५७ ॥
 
शब्दार्थ
मृष्ट—पूरी तरह स्वच्छ; चत्वर—चौक; रथ्या—मार्ग; अट्ट—चौपालें, अटारियाँ; मार्गम्—गलियाँ; चन्दन—चन्दन से; चर्चितम्—छिडक़ी हुई; लाज—लावा से; अक्षतै:—जौ से; पुष्प—फूलों से; फलै:—तथा फलों से; तण्डुलै:—धान से; बलिभि:—उपहार-सामग्रियों से; युतम्—युक्त ।.
 
अनुवाद
 
 नगर की सभी चौकें, गलियाँ, मार्ग तथा चौराहों की अटारियाँ अच्छी तरह स्वच्छ करके चन्दन जल से छिडक़ी गई थीं और सारे नगर में धान तथा जौ जैसे शुभ अन्न, फूल, फल तथा अन्य अनेक शुभ उपहार-सामग्रियाँ बिखेरी हुई थीं।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥