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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 9: ध्रुव महाराज का घर लौटना  »  श्लोक 60
 
 
श्लोक  4.9.60 
महामणिव्रातमये स तस्मिन्भवनोत्तमे ।
लालितो नितरां पित्रा न्यवसद्दिवि देववत् ॥ ६० ॥
 
शब्दार्थ
महा-मणि—मूल्यवान मणियों के; व्रात—समूह; मये—से सज्जित; स:—वह (ध्रुव); तस्मिन्—उसमें; भवन-उत्तमे—चमकीले भवन में; लालित:—लाड़-प्यार से; नितराम्—सदैव; पित्रा—पिता द्वारा; न्यवसत्—वहाँ निवास किया; दिवि—स्वर्ग में; देव वत्—देवताओं के समान ।.
 
अनुवाद
 
 तत्पश्चात् ध्रुव महाराज अपने पिता के महल में रहने लगे, जिसकी दीवालें अत्यन्त मूल्यवान मणियों से सज्जित थीं। उनके वत्सल पिता ने उनकी विशेष देख-रेख की और वे उस महल में उसी तरह रहने लगे, जिस प्रकार देवतागण स्वर्गलोक में अपने प्रासादों में रहते हैं।
 
 
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