राजा के महल के चारों ओर बगीचे थे, जिनमें उच्चस्थ लोकों से लाये गये अनेक प्रकार के वृक्ष थे। इन वृक्षों पर मधुर गीत गाते पक्षियों के जोड़े तथा गुंजार करते मदमत्त भौंरे थे।
तात्पर्य
इस श्लोक में अमर-द्रुमै: शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, जिसका अर्थ है “स्वर्ग से लाये गये वृक्ष।” उच्चस्थ लोकों को अमरलोक कहा जाता है, जहाँ मृत्यु देर से होती है, क्योंकि देवताओं की गणना के अनुसार वहाँ के लोग दस हजार वर्ष तक जीवित रहते हैं, जहाँ हमारे छह मास वहाँ के एक दिन के तुल्य होते हैं। देवता स्वर्ग लोक में देवलोक के समय के अनुसार मासों, वर्षों तथा दस हजार वर्षों तक जीवित रहते हैं और जब उनके पुण्यकर्म क्षीण हो जाते हैं, तो वे पुन: पृथ्वी पर आ जाते हैं। ये सारे कथन वैदिक साहित्य में प्राप्य हैं। जिस प्रकार वहाँ मनुष्य दस हजार वर्ष तक जीवित रहते हैं, उसी प्रकार वहाँ के वृक्ष भी। वस्तुत: इस पृथ्वी पर भी अनेक वृक्ष ऐसे हैं, जो दस हजार वर्ष तक रहते हैं, तो फिर स्वर्ग के वृक्षों का क्या कहना? उन्हें कई दस हजारों वर्ष तक जीवित रहना चाहिए और कभी-कभी, जैसाकि आज भी प्रचलित है, कुछ अमूल्य वृक्ष एक स्थान से दूसरे स्थान पर भी ले जाये जाते हैं।
अन्यत्र एक जगह कहा गया है कि जब श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ स्वर्ग गये तो वे अपने साथ स्वर्ग से पारिजात पुष्प-वृक्ष पृथ्वी पर लेते आये। इसके लिए कृष्ण तथा देवताओं में युद्ध भी हुआ। यह पारिजात कृष्ण के महल में लगाया गया, जिस में सत्यभामा का निवास था। स्वर्गलोक में फूल तथा फलों के वृक्ष उत्तम होते हैं, वे अत्यन्त मनोहर तथा स्वादिष्ट होते हैं और ऐसा लगता है कि महाराज उत्तानपाद के महल में अनेक प्रकार के ऐसे वृक्ष थे।
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