श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 9: ध्रुव महाराज का घर लौटना  »  श्लोक 66
 
 
श्लोक  4.9.66 
वीक्ष्योढवयसं तं च प्रकृतीनां च सम्मतम् ।
अनुरक्तप्रजं राजा ध्रुवं चक्रे भुव: पतिम् ॥ ६६ ॥
 
शब्दार्थ
वीक्ष्य—देखकर; ऊढ-वयसम्—प्रौढ़ अवस्था; तम्—ध्रुव को; च—तथा; प्रकृतीनाम्—मंत्रियों द्वारा; च—भी; सम्मतम्— अनुमोदित; अनुरक्त—प्रिय; प्रजम्—अपनी प्रजा द्वारा; राजा—राजा; ध्रुवम्—ध्रुव महाराज को; चक्रे—बना दिया; भुव:— पृथ्वी का; पतिम्—स्वामी (राजा) ।.
 
अनुवाद
 
 तत्पचश्चात् जब राजा उत्तानपाद ने विचार करके देखा कि ध्रुव महाराज राज्य का भार सँभालने के लिए समुचित प्रौढ़ (वयस्क) हो चुके हैं और उनके मंत्री भी सहमत हैं तथा प्रजा को भी वे प्रिय हैं, तो उन्होंने ध्रुव को इस लोक के सम्राट के रूप में सिंहासन पर बिठा दिया।
 
तात्पर्य
 यद्यपि यह भ्रान्त धारणा है कि प्राचीन काल की सरकार निरंकुश होती थी, किन्तु इस वर्णन से पता चलता है कि राजा उत्तानपाद न केवल राजर्षि थे, वरन् अपने पुत्र को सिंहासन पर बिठाने के पूर्व उन्होंने अपने सारे मंत्रियों से मंत्रणा कर ली थी; प्रजा के भी मत पर विचार किया था और स्वयं भी ध्रुव के चरित्र को परखा था। तभी राजा ने विश्व के कार्यकलापों की बागडोर संभालने के लिए उन्हें सिंहासन पर बिठाया था।

जब ध्रुव महाराज-जैसा वैष्णव सारे विश्व की सत्ता का अध्यक्ष हो तो विश्व कितना सुखी होगा, इसकी न तो कल्पना की जा सकती है, न वर्णन किया जा सकता है। यहाँ तक कि आज भी यदि सभी लोक कृष्णभक्त हो लें, तो आज की प्रजातंत्र सरकार स्वर्ग-साम्राज्य जैसी हो जाये। यदि सभी लोग कृष्ण-भक्त बन जाँए तो वे ध्रुव महाराज जैसे भक्त को ही अपना मत देंगे। यदि प्रमुख कार्यकारी का पद ऐसे वैष्णव को मिल जाये तो आसुरी सरकार की सारी समस्याएँ हल हो जायें। आधुनिक युग की युवा पीढ़ी विश्व के विभिन्न भागों में सरकार का तख्ता पलटने में उत्साहपूर्वक प्रयत्नशील है, किन्तु जब तक लोग ध्रुव महाराज के समान कृष्ण-भक्त नहीं हो जाते, तब तक सरकार में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हो सकता क्योंकि जो लोग छल-बल से राजनैतिक पद प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील होते हैं, वे जनता के कल्याण के सम्बन्ध में नहीं सोच सकते। वे तो अपनी प्रतिष्ठा और आर्थिक लाभ बनाये रखने में ही व्यस्त रहते हैं। उन्हें जनता के बारे में कल्याण के बारे में सोचने के लिए समय ही नहीं मिल पाता।

 
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