आर्थिक लेने-देन के कारण सम्बन्धों में कटुता उत्पन्न होती है, जिसका अन्त शत्रुता में होता है। कभी पति-पत्नी भौतिक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होते हैं और अपने सम्बन्ध बनाये रखने के लिए वे कठोर श्रम करते हैं, तो कभी धनाभाव अथवा रुग्ण दशा के कारण वे अत्यधिक चिन्तित रहकर मरणासन्न हो जाते हैं।
तात्पर्य
इस संसार में मनुष्यों तथा समाजों, यहाँ तक कि राष्ट्रों के बीच अनेक प्रकार के पारस्परिक लेन-देन चलते हैं। किन्तु इनका अन्त दोनों पक्षों की शत्रुता में होता है। इसी प्रकार विवाह-सम्बन्ध में आर्थिक लेन-देन के कारण घातक परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इससे मनुष्य या तो बीमार पड़ जाता है या आर्थिक रूप से चिन्तित रहने लगता है। आधुनिक युग में अधिकांश देशों का आर्थिक विकास हुआ है, किन्तु व्यापारिक लेन-देन के कारण सम्बन्धों में तनाव आया है। अन्त में राष्ट्रों के बीच युद्ध छिड़ जाता है। इस उथल-पुथल से समूचे विश्व का विनाश होता है और लोगों को अत्यधिक कष्ट उठाना पड़ता है।
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