हे शत्रुओं के संहारक, महाराज रहूगण, यदि बद्धजीव किसी प्रकार से इस भयानक स्थिति से उबर आता है, तो वह पुन: विषयी जीवन बिताने के लिए अपने घर को लौट जाता है, क्योंकि वही आसक्ति का मार्ग है। इस प्रकार ईश्वर की माया से वशीभूत वह संसार रूपी जंगल में घूमता रहता है। मृत्यु के निकट पहुँच कर भी उसे अपने वास्तविक हित का पता नहीं चल पाता।
तात्पर्य
यही सांसारिक जीवन की रीति है। जब कोई विषयों के प्रति आकृष्ट होता है, तो वह अनेक प्रकार से बँध जाता है और अपने जीवन का सही लक्ष्य नहीं समझ पाता। अत: श्रीमद्भागवत का (७.५.३१) कथन है—न ते विदु: स्वार्थगतिं हि विष्णुम्—सामान्यत: लोग जीवन के चरम उद्देश्य को नहीं समझ पाते। जैसाकि वेदों में कहा गया है—ॐ तद् विष्णो: परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरय:— जो आत्मज्ञानी हैं, वे केवल विष्णु के चरणकमलों को देखते हैं। किन्तु बद्धजीव विष्णु के साथ अपने सम्बन्ध को पुन:स्थापित करने में कोई रुचि न रखकर भौतिक विषयों में फँस जाता है और तथाकथित नेताओं द्वारा पथभ्रष्ट होकर अखण्ड बन्धन में रहता है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.