मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये। यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वत: ॥ “सहस्रों मनुष्यों में से कोई एक संसिद्धि के लिए प्रयत्नशील होता है और उन सिद्धि प्राप्त करने वालों में से कोई विरला मनुष्य ही मुझे तत्त्वत: जान पाता है।” भक्ति का मार्ग अनेक शत्रुओं पर विजय पाने वाले राजाओं के लिए भी अत्यन्त कठिन है। भले ही ये राजा युद्धभूमि में विजयी रहे हों, किन्तु वे देहात्मबुद्धि पर विजय प्राप्त नहीं कर सके। ऐसे अनेक नेता, स्वामी, योगी तथा नामधारी अवतारी पुरुष हैं, जो बौद्धिक चिन्तन में लगे रहते हैं और अपने को पूर्ण पुरुष के रूप में विज्ञापित करते रहते हैं, किन्तु अन्तत: वे सफल नहीं होते। निस्सन्देह, भक्ति मार्ग का अनुगमन अत्यन्त कठिन है, किन्तु यदि कोई महाजनों के पथ का अनुसरण करना चाहता है, तो वह अत्यन्त सरल हो जाता है। इस युग में श्री चैतन्य महाप्रभु का पथ उपलब्ध है, जिनका आविर्भाव पतित आत्माओं के उद्धार के लिए हुआ। यह पथ इतना सरल एवं सुगम है कि कोई भी श्रीभगवान् का नाम-जप करके इसे ग्रहण कर सकता है— हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम्। कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ॥ हमें सन्तोष है कि कृष्णभावनामृत आन्दोलन द्वारा इस पथ का उद्धाटन किया जा रहा है, क्योंकि अनेक योरोपीय तथा अमरीकी युवा तथा युवतियाँ इस दर्शन को गम्भीरता से ग्रहण करके क्रमश: पूर्णता प्राप्त कर रहे हैं। |