भारत-भूमिते हैल मनुष्य-जन्म यार। जन्म सार्थक करि’ कर पर-उपकार ॥ भारतवर्ष में मनुष्य जीवन के उद्देश्य की पूर्ति अथवा वास्तविक सफलता सहज ही प्राप्त की जा सकती है, क्योंकि भारत वर्ष में जीवन-उद्देश्य तथा सफलता प्राप्ति की विधि सुस्पष्ट है। भारतवर्ष में प्राप्त होने वाले सुअवसर का लाभ लोगों को, विशेष रूप से उनको जो वर्णाश्रम धर्म के नियमों का पालन करने वाले हैं, उठाना चाहिए। यदि हम वर्णाश्रम धर्म के नियमों को—चारों वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र) तथा चारों आश्रमों (ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास) को—स्वीकार करते हुए पालन नहीं करते तो जीवन में सफलता नहीं मिल सकती। दुर्भाग्यवश कलियुग के प्रभाव से प्रत्येक वस्तु की हानि हो रही है। भारतवर्ष के वासी धीरे-धीरे पतित म्लेच्छ तथा यवन बनते जा रहे हैं। तो फिर वे दूसरों को कैसे शिक्षा दे सकते हैं? इसीलिए इस कृष्णभावनामृत आन्दोलन को न केवल भारतवासियों के लिए, वरन् समस्त विश्व के मनुष्यों के लिए चलाया जा रहा है, जैसाकि श्री चैतन्य महाप्रभु ने घोषित किया है। अब भी समय है और यदि भारतवासी इस आन्दोलन को गम्भीरतापूर्वक ग्रहण करें तो सारा जगत अधोगति को प्राप्त होने से बच सकता है। यह आन्दोलन पंचरात्रिक विधि के साथ ही भागवत विधि का पालन करता है, जिससे मनुष्य इस आन्दोलन का लाभ उठाकर अपने जीवन को सफल बना सके। |