यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रता:। भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ॥ “देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को, भूतों को पूजने वाले भूतों को और जो मेरे भक्त हैं, वे मुझको ही प्राप्त होते हैं।” भारतवर्ष के वासी सामान्य रूप से वैदिक नियमों का पालन करते हैं, जिससे वे महान् यज्ञों को करते हुए स्वर्गलोकों को प्राप्त हो सकते हैं। किन्तु इतनी बड़ी उपलब्धि का क्या लाभ? जैसाकि भगवद्गीता (९.२१) में कहा गया है— क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति—यज्ञ, दान तथा अन्य पुण्यकर्मों के क्षीण होने पर मनुष्य को मर्त्यलोक में वापस आकर पुन: जन्म और मृत्यु के कष्टों का अनुभव करना होता है। किन्तु यदि कोई कृष्णभावनाभावित हो जाता है, तो वह श्रीकृष्ण के पास वापस जा सकता है (यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् )। अत: देवताओं को भी इस बात का दुख है कि वृथा ही वे स्वर्गलोक के उच्च पद पर स्थित हैं। उन्हें इस बात का खेद है कि उनका जन्म भारतवर्ष में क्यों नहीं हुआ। इसके विपरीत वे उच्चस्तर इन्द्रियतृप्ति के लोभ में आकर मृत्यु के समय भगवान् नारायण के चरणकमलों को भूल जाते हैं। निष्कर्ष यह है कि जिसने भारतवर्ष में जन्म धारण लिया है उसे श्रीभगवान् द्वारा दिये गये आदेशों का पालन करना होगा। यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम—मनुष्य को चाहिए कि वह श्रीभगवान् के धाम अर्थात् वैकुण्ठलोक या फिर गोलोक वृन्दावन वापस पहुँचे जहाँ वह श्रीभगवान् के संग आनन्दपूर्वक शाश्वत जीवन बिता सके। |