जब देवर्षि नारद सार्वणि मनु को उपदेश देने के लिए अवतरित हुए तो उन्होंने भारतवर्ष के ऐश्वर्य का वर्णन किया। सावर्णि मनु तथा भारतवर्ष के निवासी पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की भक्ति में संलग्न रहते हैं, जो सृष्टि, पालन और संहार के मूलरूप हैं और आत्मज्ञानी जनों द्वारा सदैव वंदित हैं। भारतवर्ष में भी अन्य भूखण्डों की भाँति अनेक नदियाँ तथा पर्वत हैं, किन्तु भारतवर्ष का विशेष महत्त्व इसलिए है, क्योंकि यहाँ पर वेदसम्मत वर्णाश्रम-धर्म प्रचलित है जो समाज को चार वर्णों तथा चार आश्रमों में वर्गीकृत करता है। यही नहीं, नारदमुनि के अनुसार यदि वर्णाश्रम धर्म के पालन में कोई क्षणिक बाधा भी पहुँचती है, तो तुरन्त ही उसको पुनरुज्जीवित किया जा सकता है। वर्णाश्रम धर्म में दृढ़ रहने के कारण क्रम से परम पद की प्राप्ति और भौतिक बन्धन से छुटकारा मिलता है। वर्णाश्रम धर्म के नियमों के पालन से भक्तों की संगति का सुअवसर मिलता है, जिससे श्रीभगवान् के प्रति सेवाभाव की सुप्त प्रवृत्ति जागृत होती है और पापमय जीवन से छुटकारा मिल जाता है। तब मनुष्य को भगवान् वासुदेव की विशुद्ध भक्ति करने का अवसर प्राप्त होता है। भारतवासियों को ऐसा अवसर मिल सकने के कारण स्वर्ग में भी उनकी प्रशंसा की जाती है। यहाँ तक कि इस ब्रह्मांड के सर्वोच्च लोक, ब्रह्मलोक में भी भारतवर्ष के स्थान की चर्चा अत्यन्त रुचिपूर्वक की जाती है। इस ब्रह्माण्ड के विभिन्न लोकों में तथा विभिन्न योनियों में समस्त बद्धजीवों का विकास हो रहा है। इस प्रकार कोई भी जीव ब्रह्मलोक को प्राप्त कर सकता है, किन्तु उसे पुन: पृथ्वी पर उतरना होता है जैसाकि श्रीमद्भगवद्गीता में पुष्टि की गई है (आब्रह्म भुवनाल्लोका: पुनरावर्तिनोऽर्जुन )। यदि भारतवर्ष के वासी वर्णाश्रम धर्म का दृढ़ता से पालन करें और अपनी सुसुप्त कृष्णभावना को विकसित होने दें तो मृत्यु के पश्चात् उन्हें इस भौतिक जगत में लौटने की आवश्यकता नहीं रह जाती। जहाँ सिद्ध आत्माओं द्वारा श्रीभगवान् की चर्चा सुनने को नहीं होती, चाहे व ब्रह्मलोक ही क्यों न हो, जीवात्मा के लिए अनुकूल स्थान नहीं है। यदि किसी ने भारतवर्ष में मनुष्य का जन्म लेकर आध्यात्मिक उन्नति का लाभ नहीं उठाया तो सचमुच ही उसकी स्थिति शोचनीय है। यदि भारतवर्ष की भूमि में कोई “सर्वकाम” भक्त है अर्थात् वह किसी भौतिक कामना की पूर्ति करना चाहता है, तो वह भी भक्तों की संगति करने से समस्त कामनाओं से मुक्त होकर अंत में शुद्ध भक्त बन जाता है और बिना किसी कठिनाई के भगवान् के धाम वापस पहुँच जाता है। इस अध्याय के अन्त में श्रीशुकदेव गोस्वामी ने महाराज परीक्षित् से जम्बूद्वीप के अन्तर्गत आठ उपद्वीपों का वर्णन किया है। |