हे ब्राह्मण, मुझे तो तुम्हारे नूपुरों की झंकार ही सुनाई पड़ती है। ऐसा लगता है उनके भीतर तीतर पक्षी चहक रहे हैं। मैं उनके रूपों को नहीं देख रहा, किन्तु मैं सुन रहा हूँ कि वे किस प्रकार चहक रहे हैं। जब मैं तुम्हारे सुन्दर गोल नितम्बों को देखता हूँ, तो मुझे लगता है कि मानो वे कदम्ब के पुष्पों का सुन्दर रंग लिए हों। तुम्हारी कमर में जाज्वल्यमान अंगारों की मेखला पड़ी हुई है। दरअसल, ऐसा लगता है कि तुम वस्त्र धारण करना भूल गये हो।
तात्पर्य
पूर्वचित्ति को कामुक भाव से देखते हुए आग्नीध्र ने उस तरुणी के आकर्षक नितम्बों तथा कटि भाग पर दृष्टि फेरी। जब मनुष्य किसी स्त्री को इस प्रकार कामेच्छा से देखता है, तो वह उसके मुख, स्तन तथा कटि पर मोहित हो जाता है, क्योंकि पुरुष को अपनी वासना तृप्त करने के लिए स्त्री पहले पहल अपनी सुन्दर मुखाकृति, अपने उरोजों के उभार और कटिभाग से आकर्षित करती है। पूर्वचित्ति ने सुन्दर पीला रेशमी वस्त्र पहन रखा था, अत: उसके नितम्ब कदम्ब पुष्प के समान लग रहे थे। करधनी के कारण उसकी कमर जाज्वल्यमान अंगारों से घिरी प्रतीत हुई। यद्यपि वह वस्त्रों से पूर्णत: सज्जित थी, किन्तु आग्नीध्र इतना काममोहित हो गया था कि उसे पूछना पड़ा “तुम वस्त्ररहित होकर क्यों आई हो?”
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