हे श्रेष्ठ तपस्वी, तुम्हें दूसरों की तपस्या को भंग करने वाला यह अद्भुत् रूप कहाँ से प्राप्त हुआ? तुमने यह कला कहाँ से सीखी? हे मित्र, तुमने इस सुन्दरता को प्राप्त करने के लिए कौन सा तप किया है? मेरी इच्छा है कि तुम मेरे साथ तपस्या में सम्मिलित हो जाओ, क्योंकि हो सकता है कि इस ब्रह्माण्ड के स्रष्टा भगवान् ब्रह्मा ने मुझ पर प्रसन्न होकर तुम्हें मेरी पत्नी बनने के लिए भेजा हो।
तात्पर्य
आग्नीध्र ने पूर्वचित्ति के अपूर्व सौंदर्य की प्रशंसा की। दरअसल, उसे ऐसा अद्वितीय सौंदर्य देखकर आश्चर्य हुआ जो पूर्व तपस्या का फल हो सकता है; इसीलिए उसने उस बालिका से प्रश्न किया कि उसने यह रूप कहीं अन्यों की तपस्या को भंग करने के लिए तो नहीं प्राप्त किया। उसने विचार किया कि हो न हो, ब्रह्माण्ड के सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने उस पर प्रसन्न होकर ही उसे उसकी पत्नी बनने के उद्देश्य से भेजा है। उसने पूर्वचित्ति से पत्नी बनने की प्रार्थना की जिससे वे दोनों मिलकर तपस्या कर सकें। दूसरे शब्दों में, यदि पति तथा पत्नी आत्म-ज्ञान के एक ही धरातल पर हों, तो उपयुक्त पत्नी गृहस्थ जीवन में तपस्या करने में अपने पति की सहयोगी होती है। आत्म-ज्ञान के बिना पति तथा पत्नी समान पद पर स्थित नहीं हो पाते। भगवान् ब्रह्मा की यही इच्छा रहती है कि अच्छी संतति जन्मे, अत: जब तक वे प्रसन्न नहीं होते किसी को अनुकूल पत्नी नहीं मिल सकती। वास्तव में विवाहोत्सव में ब्रह्मा की उपासना की जाती है। आज भी भारत में विवाह के निमंत्रण पत्रों के ऊपर भगवान् ब्रह्मा का चित्र बना रहता है।
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