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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 2: महाराज आग्नीध्र का चरित्र  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  5.2.19 
तस्यामु ह वा आत्मजान् स राजवर आग्नीध्रो नाभिकिम्पुरुषहरिवर्षेलावृतरम्यकहिरण्मयकुरुभद्राश्वकेतुमालसंज्ञान्नव पुत्रानजनयत् ॥ १९ ॥
 
शब्दार्थ
तस्याम्—उससे; उ ह वा—निश्चय ही; आत्म-जान्—पुत्र; स:—उसने; राज-वर:—राजाओं में श्रेष्ठ; आग्नीध्र:—आग्नीध्र ने; नाभि—नाभि; किंपुरुष—किम्पुरुष; हरि-वर्ष—हरिवर्ष; इलावृत—इलावृत; रम्यक—रम्यक; हिरण्मय—हिरण्यमय; कुरु— कुरु; भद्राश्व—भद्राश्व; केतु-माल—केतुमाल; संज्ञान्—नामक; नव—नौ; पुत्रान्—पुत्रों को; अजनयत्—उत्पन्न किया ।.
 
अनुवाद
 
 राजाओं में श्रेष्ठ महाराज आग्नीध्र को पूर्वचित्ति के गर्भ से नौ पुत्र प्राप्त हुए जिनके नाम नाभि, किम्पुरुष, हरिवर्ष, इलावृत, रम्यक, हिरण्मय, कुरु, भद्राश्व तथा केतुमाल थे।
 
 
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