यदि कोई किसी के विषय में निरन्तर सोचता है, तो मृत्यु के उपरान्त उसे वैसा ही शरीर प्राप्त होता है। महाराज आग्नीध्र सदा पितृलोक के विषय में सोच रहे थे, जहाँ उनकी पत्नी पहुँची थी, इसलिए मृत्यु के बाद उन्हें वह लोक मिला, जिससे वे उसके साथ पुन: रह सकें। भगवद्गीता का (८.६) भी कथन है— यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित: ॥
“जीव अपना शरीर त्यागते समय जिस किसी भाव (दशा) का स्मरण करता है, वह उसे निश्चय ही प्राप्त करता है।” अत: हम सहज ही इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि यदि हम निरन्तर श्रीकृष्ण का स्मरण करें, अथवा पूर्णत: कृष्णभावनाभावित हो जाँय, तो हमें गोलोक वृन्दावन प्राप्त हो सकता है जहाँ श्रीकृष्ण निरन्तर वास करते हैं।