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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 2: महाराज आग्नीध्र का चरित्र  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  5.2.4 
सा च तदाश्रमोपवनमतिरमणीयं विविधनिबिडविटपिविटपनिकरसंश्लिष्टपुरटलतारूढस्थलविहङ्गममिथुनै: प्रोच्यमानश्रुतिभि: प्रतिबोध्यमानसलिलकुक्कुटकारण्डवकलहंसादिभिर्विचित्रमुपकूजितामलजलाशयकमलाकरमुपबभ्राम ॥ ४ ॥
 
शब्दार्थ
सा—वह (पूर्वचित्ति); —भी; तत्—महाराज आग्नीध्र को; आश्रम—ध्यान-स्थल के; उपवनम्—छोटा उद्यान, पार्क; अति—अत्यन्त; रमणीयम्—सुन्दर; विविध—अनेक प्रकार के; निबिड—घना; विटपि—वृक्ष; विटप—डालों के; निकर— समूह; संश्लिष्ट—संलग्न; पुरट—स्वर्णिम; लता—लताओं सहित; आरूढ—ऊपर चढ़ी हुई; स्थल-विहङ्गम—स्थल के पक्षियों के; मिथुनै:—जोड़ों सहित; प्रोच्यमान—कूजन करते हुए; श्रुतिभि:—सुहावने शब्दों से; प्रतिबोध्यमान—प्रतिध्वनित; सलिल- कुक्कुट—जल-कुक्कुट; कारण्डव—बत्तख; कल-हंस—अनेक प्रकार के हंसों; आदिभि:—इत्यादि, सहित; विचित्रम्—नाना प्रकार के; उपकूजित—शब्द से प्रतिध्वनित; अमल—निर्मल; जल-आशय—सरोवर या झील में; कमल-आकरम्—कमल पुष्पों की खान; उपबभ्राम—में चलने लगी ।.
 
अनुवाद
 
 श्री ब्रह्मा द्वारा भेजी गई अप्सरा उस उपवन के निकट विचरने लगी जहाँ राजा ध्यान में लगकर आराधना कर रहा था। वह उपवन सघन वृक्षों तथा स्वर्णिम लताओं के कारण अत्यन्त रमणीय था। वहाँ स्थल पर मयूर जैसे अनेक पक्षियों के जोड़े और सरोवर में बत्तख तथा हंस सुमधुर कूजन कर रहे थे। इस प्रकार वह उपवन वृक्षों, निर्मल जल, कमल पुष्प तथा सुमधुर कूजन करते विविध पक्षियों के कारण अत्यन्त सुन्दर लग रहा था।
 
 
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