शिष्या:—शिष्य; इमे—ये; भगवत:—पूज्य के; परित:—चारों ओर से घेरे हुए; पठन्ति—सुना रहे हैं; गायन्ति—गायन कर रहे हैं; साम—सामवेद; स-रहस्यम्—रहस्ययुक्त; अजस्रम्—निरन्तर; ईशम्—ईश्वर को; युष्मत्—तुम्हारी; शिखा—चोटी से; विलुलिता:—गिरे हुए; सुमन:—पुष्पों की; अभिवृष्टी:—वृष्टि; सर्वे—समस्त; भजन्ति—भोगते हैं; ऋषि-गणा:—ऋषि, मुनि; इव—सदृश; वेद-शाखा:—वैदिक शास्त्रों की शाखाएँ ।.
अनुवाद
पूर्वचित्ति का अनुगमन करने वाले भौरों को देखकर महाराज आग्नीध्र बोले—भगवन्, ऐसा प्रतीत होता है मानो तुम्हारे शरीर को घेरे हुए ये भौंरे अपने पूज्य गुरु को घेरे हुए शिष्य हैं। वे सामवेद तथा उपनिषद् के मंत्रों का निरन्तर गायन कर रहे हैं और इस प्रकार तुम्हारी स्तुति कर रहे हैं। जैसे ऋषिगण वैदिक शास्त्रों की शाखाओं का अनुसरण करते हैं, ये भौंरें तुम्हारी चोटी से झडऩे वाले पुष्पों का आनन्द ले रहे हैं।
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