योऽसौ गुहप्रहरणोन्मथितनितम्बकुञ्जोऽपि क्षीरोदेनासिच्यमानो भगवता वरुणेनाभिगुप्तो विभयो बभूव ॥ १९ ॥
शब्दार्थ
य:—जो; असौ—वह (पर्वत); गुह-प्रहरण—भगवान् शिव के पुत्र कार्तिकेय के प्रहार द्वारा; उन्मथित—मथा हुआ; नितम्ब- कुञ्ज:—ढालों पर के वृक्ष तथा वनस्पतियाँ; अपि—यद्यपि; क्षीर-उदेन—क्षीर सागर से; आसिच्यमान:—सदैव सिंचित होकर; भगवता—सर्वशक्तिमान द्वारा; वरुणेन—वरुण नाम देवता के द्वारा; अभिगुप्त:—सुरक्षित; विभय: बभूव—निर्भय हो गया है ।.
अनुवाद
यद्यपि कार्त्तिक्ये के शस्त्र प्रहार से क्रौंच पर्वत के ढालों की वनस्पतियाँ विनष्ट हो गई थीं, किन्तु चारों ओर से क्षीरसागर द्वारा सदा सिंचित होने एवं वरुण देव के द्वारा संरक्षित होने से यह पर्वत पुन: निर्भीक हो गया है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥