वायुपुराण में घोड़ों की स्थिति का वर्णन हुआ है— सप्ताश्वरूपच्छन्दांसि वहन्ते वामतो रविम्।
चक्रपक्षनिबद्धानि चक्रेवाक्ष: समाहित: ॥
यद्यपि अरुणदेव सबसे आगे के आसन पर आसीन होकर घोड़ों को वश में रखते हैं, किन्तु वे अपनी बाईं ओर से पीछे मुडक़र सूर्यदेव को देखते रहते हैं।