श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 21: सूर्य की गतियों का वर्णन  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  5.21.18 
तथान्ये च ऋषयो गन्धर्वाप्सरसो नागा ग्रामण्यो यातुधाना देवा इत्येकैकशो गणा: सप्त चतुर्दश मासि मासि भगवन्तं सूर्यमात्मानं नानानामानं पृथङ्‌नानानामान: पृथक्‌कर्मभिर्द्वन्द्वश उपासते ॥ १८ ॥
 
शब्दार्थ
तथा—इसी प्रकार; अन्ये—अन्य; च—भी; ऋषय:—ऋषिगण; गन्धर्व-अप्सरस:—गन्धर्व तथा अप्सराएँ; नागा:—नाग(सर्प); ग्रामण्य:—यक्ष; यातुधाना:—राक्षसगण; देवा:—देवता; इति—इस प्रकार; एक-एकश:—एक एक करके; गणा:—समूह; सप्त—सात; चतुर्दश—चौदह; मासि मासि—प्रत्येक महीने; भगवन्तम्—सर्वशक्तिमान देवता; सूर्यम्—सूर्य को; आत्मानम्— ब्रह्माण्ड का प्राण; नाना—अनेक; नामानम्—नाम वाला; पृथक्—भिन्न; नाना-नामान:—विभिन्न नाम वाला; पृथक्—भिन्न; कर्मभि:—अनुष्ठानों द्वारा; द्वन्द्वश:—दो के समूहों में, जोड़ों में; उपासते—उपासना करते हैं ।.
 
अनुवाद
 
 इसी प्रकार अन्य मुनि, गन्धर्व, अप्सराएँ, नाग, यक्ष, राक्षस तथा देवतागण जो संख्या में चौदह हैं, किन्तु दो-दो के जोड़े में विभाजित हैं, प्रतिमास नया नाम धारण करके अनेक नामधारी, सर्वाधिक शक्तिमान देवता सूर्य के रूप में श्रीभगवान् की आराधना करने के लिए निरन्तर विभिन्न कर्मकाण्डों से उपासना करते रहते हैं।
 
तात्पर्य
 विष्णु-पुराण में कहा गया है—

स्तुवन्ति मुनय: सूर्यं गन्धर्वैर्गीयते पुर:।

नृत्यन्तोऽप्सरसो यान्ति सूर्यस्यानु निशाचरा: ॥

वहन्ति पन्नगा यक्षै: क्रियतेऽभिषुसंग्रह:।

वालिखिल्यास्तथैवैनं परिवार्य समासते ॥

सोऽयं सप्तगण: सूर्यमंडले मुनिसत्तम।

हिमोष्ण वारिवृष्टीणां हेतुत्वे समयं गत: ॥

सर्वशक्तिमान सूर्यदेवता की आराधना करते समय गन्धर्व उनके समक्ष गाते हैं, अप्सराएँ रथ के समक्ष नाचती हैं, निशाचर रथ का पीछा करते हैं, पन्नग रथ को सजाते हैं, यक्ष रथ की रक्षा करते हैं और वालखिल्य नामक ऋषिगण सूर्यदेवता को घेर कर स्तुति करते हैं। चौदह सहयोगियों के सात जोड़े ब्रह्माण्ड भर में हिम, ताप तथा वर्षा का उचित समय निश्चित करते हैं।

 
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