विष्णु-पुराण में कहा गया है— स्तुवन्ति मुनय: सूर्यं गन्धर्वैर्गीयते पुर:।
नृत्यन्तोऽप्सरसो यान्ति सूर्यस्यानु निशाचरा: ॥
वहन्ति पन्नगा यक्षै: क्रियतेऽभिषुसंग्रह:।
वालिखिल्यास्तथैवैनं परिवार्य समासते ॥
सोऽयं सप्तगण: सूर्यमंडले मुनिसत्तम।
हिमोष्ण वारिवृष्टीणां हेतुत्वे समयं गत: ॥
सर्वशक्तिमान सूर्यदेवता की आराधना करते समय गन्धर्व उनके समक्ष गाते हैं, अप्सराएँ रथ के समक्ष नाचती हैं, निशाचर रथ का पीछा करते हैं, पन्नग रथ को सजाते हैं, यक्ष रथ की रक्षा करते हैं और वालखिल्य नामक ऋषिगण सूर्यदेवता को घेर कर स्तुति करते हैं। चौदह सहयोगियों के सात जोड़े ब्रह्माण्ड भर में हिम, ताप तथा वर्षा का उचित समय निश्चित करते हैं।