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श्लोक 5.21.6  |
यावद्दक्षिणायनमहानि वर्धन्ते यावदुदगयनं रात्रय: ॥ ६ ॥ |
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शब्दार्थ |
यावत्—जब तक; दक्षिण-अयनम्—सूर्य दक्षिण को चला जाता है; अहानि—दिन; वर्धन्ते—बढ़ते हैं; यावत्—जब तक; उदगयनम्—सूर्य उत्तर को जाता है (उत्तरायण); रात्रय:—रातें ।. |
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अनुवाद |
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सूर्य के दक्षिणायन होने तक दिन बढ़ते रहते हैं और उत्तरायण होने तक रातें लम्बी होती जाती हैं। |
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