श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 22: ग्रहों की कक्ष्याएँ  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  5.22.17 
तत उत्तरस्माद‍ृषय एकादशलक्षयोजनान्तर उपलभ्यन्ते य एव लोकानां शमनुभावयन्तो भगवतो विष्णोर्यत्परमं पदं प्रदक्षिणं प्रक्रमन्ति ॥ १७ ॥
 
शब्दार्थ
तत:—शनि ग्रह; उत्तरस्मात्—ऊपर; ऋषय:—ऋषिगण; एकादश-लक्ष-योजन-अन्तरे—११,००,००० योजन की दूरी पर; उपलभ्यन्ते—अवस्थित है; ये—सभी; एव—ही; लोकानाम्—ब्रह्माण्ड के समस्त निवासियों के लिए; शम्—शुभ; अनुभावयन्त:—सदैव सोचते हैं; भगवत:—श्रीभगवान्; विष्णो:—भगवान् विष्णु का; यत्—जो; परमम् पदम्—परम धाम; प्रदक्षिणम्—दायें रख कर; प्रक्रमन्ति—परिक्रमा करते हैं ।.
 
अनुवाद
 
 शनिग्रह से ११,००,००० योजन अर्थात् ८८,००,००० मील (अथवा पृथ्वी से २,०८,००,००० मील) ऊपर सप्तर्षि अवस्थित हैं, जो सदैव ब्रह्माण्ड के समस्त प्राणियों की मंगल-कामना करते रहते हैं। वे भगवान् विष्णु के परम धाम ध्रुवलोक की प्रदक्षिणा करते हैं।
 
तात्पर्य
 श्रील मध्वाचार्य ने ब्रह्माण्ड पुराण से निम्नलिखित श्लोक उद्धृत किया है— ज्ञानानन्दात्मनो विष्णु: शिशुमारवपुष्यथ।

ऊर्ध्वलोकेषु स व्याप्त आदित्याद्यास्तदाश्रिता ॥

ज्ञान तथा दिव्य आनन्द के स्रोत भगवान् विष्णु ने ब्रह्माण्ड के सर्वोच्च तल पर स्थित सातवें स्वर्ग में शिशुमार का रूप धारण किया। सूर्य आदि अन्य सभी ग्रह इस शिशुमार लोक के अधीन अवस्थित हैं।

 
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के पंचम स्कन्ध के अन्तर्गत “ग्रहों की कक्ष्याएँ” नामक बाईसवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥