हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 22: ग्रहों की कक्ष्याएँ  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  5.22.4 
तमेतमिह पुरुषास्त्रय्या विद्यया वर्णाश्रमाचारानुपथा उच्चावचै: कर्मभिराम्नातैर्योगवितानैश्च श्रद्धया यजन्तोऽञ्जसा श्रेय: समधिगच्छन्ति ॥ ४ ॥
 
शब्दार्थ
तम्—उस (श्रीभगवान्) को; एतम्—यह; इह—इस मर्त्यलोक में; पुरुषा:—सभी मनुष्य; त्रय्या—तीन विभागों वाले; विद्यया—वैदिक ज्ञान से; वर्ण-आश्रम-आचार—वर्णाश्रम धर्म; अनुपथा:—अनुसरण करते हुए; उच्च-अवचै:—वर्णाश्रम धर्म (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र) में पद के अनुसार उच्च या निम्न; कर्मभि:—अपने कर्मों द्वारा; आम्नातै:—प्रदत्त; योग- वितानै:—ध्यान तथा अन्य योग-क्रियाओं से; —तथा; श्रद्धया—अत्यन्त श्रद्धा सहित; यजन्त:—आराधना करते हुए; अञ्जसा—बिना कठिनाई के; श्रेय:—जीवन का परम लाभ; समधिगच्छन्ति—प्राप्त करते हैं ।.
 
अनुवाद
 
 चारों वर्णों तथा चारों आश्रमों के लोग सामान्य रूप से सूर्यदेव के रूप में पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् नारायण की उपासना करते हैं। वे अत्यन्त श्रद्धा के साथ वेदत्रयी द्वारा प्रतिपादित अग्निहोत्र जैसे छोटे-बड़े सकाम कर्मों के अनुसार तथा योग क्रिया द्वारा परमात्मास्वरूप श्रीभगवान् की आराधना करते हैं। इस प्रकार वे सुगमतापूर्वक जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥