श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 22: ग्रहों की कक्ष्याएँ  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  5.22.9 
अथ चापूर्यमाणाभिश्च कलाभिरमराणां क्षीयमाणाभिश्च कलाभि: पितृणामहोरात्राणि पूर्वपक्षापरपक्षाभ्यां वितन्वान: सर्वजीवनिवहप्राणो जीवश्चैकमेकं नक्षत्रं त्रिंशता मुहूर्तैर्भुङ्क्ते ॥ ९ ॥
 
शब्दार्थ
अथ—इस प्रकार; च—भी; आपूर्यमाणाभि:—क्रमश: बढ़ते हुए; च—तथा; कलाभि:—चन्द्रमा की कलाओं; अमराणाम्— देवताओं का; क्षीयमाणाभि:—क्रमश: घटते रहने से; च—तथा; कलाभि:—चन्द्र कलाओं से; पितृणाम्—पितृलोक-वासियों का; अह:-रात्राणि—दिन तथा रात; पूर्व-पक्ष-अपर-पक्षाभ्याम्—कृष्ण तथा शुक्ल पक्ष से; वितन्वान:—वितरित करते हुए; सर्व-जीव-निवह—समस्त जीवात्माओं का; प्राण:—जीवन, प्राण; जीव:—जीव; च—भी; एकम् एकम्—एक के बाद एक; नक्षत्रम्—तारा-समूह; त्रिंशता—तीस; मुहूर्तै:—मुहूर्तों से; भुङ्क्ते—तय करता है ।.
 
अनुवाद
 
 जब चन्द्रमा बढ़ता है (शुक्ल पक्ष में) तो इसका प्रकाशमय अंश प्रतिदिन बढ़ता जाता है, जिससे देवताओं के लिए दिन और पितरों के लिए रात्रि उत्पन्न होती है। किन्तु जब चन्द्रमा घटता रहता है (कृष्ण पक्ष में) तो देवताओं के लिए रात्रि और पितरों के लिए दिन उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार तीस मुहूर्तों में (पूरे एक दिन में) चन्द्रमा प्रत्येक नक्षत्र से होकर गुजरता है। चन्द्रमा अमृतमयी शीतलता प्रदान करके अन्नों की वृद्धि को प्रभावित करता है, इसलिए चन्द्रदेव को समस्त जीवात्माओं का प्राण माना जाता है। फलस्वरूप उसे इस ब्रह्माण्ड में वास करने वाला मुख्य प्राणी, जीव, कहा गया है।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥