इस अध्याय में बताया गया है कि किस प्रकार सभी ग्रह ध्रुवतारा अथवा ध्रुवलोक का आश्रय ग्रहण करते हैं। इसमें इसका भी वर्णन है कि ये सभी ग्रह मण्डल पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के बाह्यशरीर के अन्य विस्तार शिशुमार के रूप में हैं। इस ब्रह्माण्ड के भीतर भगवान् विष्णु का आवास ध्रुवलोक, सप्तनक्षत्रों से १३,००,००० योजन की दूरी पर स्थित है। ध्रुवलोक ग्रहमंडल में अग्नि, इन्द्र, प्रजापति, कश्यप तथा धर्म नामक नक्षत्र सम्मिलित हैं और ये सभी नक्षत्र धुव्र तारा पर रहने वाले परम भक्त ध्रुव को आदर की दृष्टि से देखते हैं। सभी नक्षत्र काल द्वारा प्रेरित होकर ध्रुवलोक के चारों ओर इसी प्रकार चक्कर लगाते हैं, जिस प्रकार एक मध्यवर्ती धुरी में जुते हुए बैल। जो भगवान् के विश्वरूप अर्थात् विराट पुरुष की आराधना करते हैं, वे इस समग्र चक्कर लगाते हुए ग्रह मंडल को शिशुमार नामक जन्तु मानते हैं। यह काल्पनिक शिशुमार ईश्वर का अन्य
रूप है। इसका शिर नीचे की ओर है और इसका शरीर कुण्डलीबद्ध सर्प की भाँति प्रतीत होता है। इसकी पूँछ के सिरे पर ध्रुवलोक, पूँछ के मध्य में प्रजापति, अग्नि, इन्द्र तथा धर्म और पूँछ के ऊपरी भाग में धाता तथा विधाता स्थित हैं। इसके कटि भाग में सात महर्षि हैं। शिशुमार का पूरा शरीर दाई ओर है और यह नक्षत्रों की कुण्डली के समान लगता है। इस कुण्डली के दाईं ओर अभिजित् से लेकर पुनर्वसु पर्यन्त चौदह प्रमुख नक्षत्र हैं। बाईं ओर भी पुष्य से उत्तराषाढ़ा पर्यन्त चौदह नक्षत्र हैं। पुनर्वसु तथा पुष्य नक्षत्र शिशुमार के दाहिने तथा बाएँ कूल्हे पर और आर्द्रा तथा अश्लेषा नक्षत्र दाहिने तथा बाएँ पैरों पर अवस्थित हैं। वैदिक ज्योतिर्विदों की गणनाओं के अनुसार अन्य नक्षत्र भी शिशुमार चक्र की विभिन्न दिशाओं में स्थित हैं। योगीजन ध्यानावस्थित होने के लिए शिशुमार की आराधना करते हैं। इसी को कुंडलिनी चक्र भी कहा जाता है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥