भागवत पुराण » स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा » अध्याय 24: नीचे के स्वर्गीय लोकों का वर्णन » श्लोक 11 |
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| | श्लोक  | यत्र ह वाव न भयमहोरात्रादिभि: कालविभागैरुपलक्ष्यते ॥ ११ ॥ | | शब्दार्थ | यत्र—जहाँ; ह वाव—निश्चय ही; न—नहीं; भयम्—भय, डर; अह:-रात्र-आदिभि:—दिन और रात के कारण; काल विभागै:—काल के विभाग; उपलक्ष्यते—अनुभव किया जाता है ।. | | अनुवाद | | चूँकि उन अध:लोकों में सूर्य का प्रकाश नहीं जाता, अत: काल दिन तथा रात में विभाजित नहीं है, जिसके फलस्वरूप काल से उत्पन्न भय नहीं रहता। | | |
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