श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 24: नीचे के स्वर्गीय लोकों का वर्णन  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  5.24.7 
उपवर्णितं भूमेर्यथासन्निवेशावस्थानमवनेरप्यधस्तात् सप्त भूविवरा एकैकशो योजनायुतान्तरेणायामविस्तारेणोपक्‍ल‍ृप्ता अतलं वितलं सुतलं तलातलं महातलं रसातलं पातालमिति ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
उपवर्णितम्—पूर्वकथित; भूमे:—पृथ्वी का; यथा-सन्निवेश-अवस्थानम्—विभिन्न स्थानों की योजना के अनुसार; अवने:— पृथ्वी के; अपि—निश्चय ही; अधस्तात्—नीचे; सप्त—सात; भू-विवरा:—अन्य लोक; एक-एकश:—क्रम से, ब्रह्माण्ड की ऊपरी सीमा तक; योजन-अयुत-अन्तरेण—दस हजार योजन के अन्तर पर; आयाम-विस्तारेण—चौड़ाई तथा लम्बाई में; उपकॢप्ता:—स्थित; अतलम्—अतल; वितलम्—वितल; सुतलम्—सुतल; तलातलम्—तलातल; महातलम्—महातल; रसातलम्—रसातल; पातालम्—पाताल; इति—इस प्रकार ।.
 
अनुवाद
 
 हे राजन्, इस पृथ्वी के नीचे सात अन्य लोक हैं, जो अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल तथा पाताल कहलाते हैं। मैं पृथ्वीलोक की स्थिति पहले ही बता चुका हूँ। इन सात निम्नलोकों की चौड़ाई तथा लम्बाई पृथ्वी के बराबर ही परिगणित की गई है।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥