परमेश्वर की व्यवस्था से खटमल तथा मच्छर जैसे निम्न श्रेणी के जीव मनुष्यों तथा अन्य पशुओं का रक्त चूसते हैं। इन तुच्छ प्राणियों को इसका ज्ञान नहीं होता है कि उनके काटने से मनुष्यों को पीड़ा होती होगी। किन्तु उच्च श्रेणी के मुनष्यों—यथा ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य— में चेतना विकसित रूप में होती है, अत: वे जानते हैं कि किसी का प्राणघात करना कितना कष्टदायक है। यदि ज्ञानवान होते हुए भी मनुष्य विवेकहीन तुच्छ प्राणियों को मारता है या सताता है, तो वह निश्चय ही पाप करता है। श्रीभगवान् ऐसे मनुष्य को अन्धकूप में रखकर दण्डित करते हैं जहाँ उसे वे समस्त पक्षी तथा पशु, सर्प, मच्छर, जूँ, कीड़े, मक्खियाँ तथा अन्य प्राणी, जिनको उसने अपने जीवनकाल में सताया था, उस पर चारों ओर से आक्रमण करते हैं और उसकी नींद हराम कर देते हैं। आराम न कर सकने के कारण वह अंधकार में घूमता रहता है। इस प्रकार अन्धकूप में उसे वैसी ही यातना मिलती है जैसी कि निम्न योनि के प्राणी को।
तात्पर्य
इस शिक्षाप्रद श्लोक से हमें पता चलता है कि निम्न प्राणी प्रकृति के नियमानुसार मनुष्यों को तंग करने के लिए उत्पन्न किये गये हैं, अत: वे दण्डनीय नहीं हैं। चूँकि मनुष्यों में चेतना विकसित है, अत: वे वर्णाश्रम धर्म के नियमों के विरुद्ध कुछ भी नहीं कर सकते, अन्यथा भर्त्सना के पात्र होंगे। श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता (४.१३) में कहा है—चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश:—“प्रकृति के त्रिगुणों और नियत कर्म के अनुसार चारों वर्ण मेरे द्वारा रचे गये हैं।” अत: समस्त मनुष्यों को चार वर्णों—ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र—में विभाजित करना
चाहिए और उन्हें निर्दिष्ट नियमों के अनुसार कार्य करना चाहिए। वे उन नियमों से तनिक भी विपथ नहीं हो सकते। इन नियमों में से एक में बताया गया है उन्हें किसी पशु को, यहाँ तक कि जो मनुष्यों को सताते हैं उन्हें भी कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए। यद्यपि शेर किसी पशु पर आक्रमण करके उसे मार कर उसका मांस खाता है तथापि वह पापमय नहीं है, किन्तु यदि विकसित चेतना से पूर्ण मनुष्य भी ऐसा करे तो उसे दण्डित किया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में, वह मनुष्य जो अपनी विकसित चेतना का उपयोग नहीं करता, वरन् उल्टे पशुवत् व्यवहार करता है, वह अनेक नरकों में दण्ड पाता है।
____________________________
All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥