ऋषि: उवाच—महामुनि (शुकदेव गोस्वामी) बोले; त्रि-गुणत्वात्—तीन गुणों के कारण; कर्तु:—कर्ता का; श्रद्धया—श्रद्धा के कारण; कर्म-गतय:—कार्यों के कारण स्थितियाँ; पृथक्—भिन्न; विधा:—प्रकार; सर्वा:—सभी; एव—इस प्रकार; सर्वस्य—उन सबों का; तारतम्येन—विभिन्न मात्राओं में; भवन्ति—सम्भव होते हैं ।.
अनुवाद
महामुनि शुकदेव बोले—हे राजन्, इस जगत में सतोगुण, रजोगुण तथा तमोगुण में स्थित तीन प्रकार के कर्म होते हैं। चूँकि सभी मनुष्य इन तीन गुणों से प्रभावित होते हैं, अत: कर्मों के फल भी तीन प्रकार के होते हैं। जो सतोगुण के अनुसार कर्म करता है, वह धार्मिक एवं सुखी होता है, जो रजोगुण में कर्म करता है उसे कष्ट तथा सुख के मिश्रित रूप में प्राप्त होते हैं और जो तमोगुण के वश में कर्म करता है, वह सदैव दुखी रहता है और पशुतुल्य जीवन-बिताता है। विभिन्न गुणों से भिन्न-भिन्न मात्रा में प्रभावित होने के कारण जीवात्माओं को विभिन्न गतियाँ प्राप्त होती हैं।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥