अथ च यस्त्विह वा आत्मसम्भावनेन स्वयमधमो जन्मतपोविद्याचारवर्णाश्रमवतो वरीयसो न बहु मन्येत स मृतक एव मृत्वा क्षारकर्दमे निरयेऽवाक्शिरा निपातितो दुरन्ता यातना ह्यश्नुते ॥ ३० ॥
शब्दार्थ
अथ—आगे; च—भी; य:—जो; तु—लेकिन; इह—इस जीवन में; वा—या; आत्म-सम्भावनेन—झूठी प्रतिष्ठा से; स्वयम्— स्वयं; अधम:—अत्यन्त नीच; जन्म—जन्म; तप:—तप; विद्या—ज्ञान; आचार—सद-आचरण; वर्ण-आश्रम-वत:—वर्णाश्रम के नियमों का कठोरता से पालन करते हुए; वरीयस:—अधिक आदरणीय का; न—नहीं; बहु—अधिक; मन्येत—आदर करता है; स:—वह; मृतक:—मृत शरीर; एव—मात्र; मृत्वा—मरने के बाद; क्षारकर्दमे—क्षारकर्दम नामक; निरये—नरक में; अवाक्-शिरा—अधोमुख; निपातित:—गिराया जाकर; दुरन्ता: यातना:—अत्यन्त वेदनामयी स्थिति; हि—निस्सन्देह; अश्नुते— भोगता है ।.
अनुवाद
जो निम्न जाति में उत्पन्न होकर घृणित होते हुए भी इस जीवन में यह सोच कर झूठा गर्व करता है कि “मैं महान् हूँ” और उच्च जन्म, तप, शिक्षा, आचार, जाति अथवा आश्रम में अपने से बड़ों का उचित आदर नहीं करता वह इसी जीवन में मृत-तुल्य है और मृत्यु के पश्चात् क्षारकर्दम नरक में सिर के बल नीचे गिराया जाता है। वहाँ उसे यमदूतों के हाथों से अत्यन्त कठिन यातनाएँ सहनी पड़ती हैं।
तात्पर्य
मनुष्य को चाहिए कि वह झूठा गर्व न करे। उसे चाहिए कि जन्म, शिक्षा, आचरण, जाति अथवा आश्रम में अपने से उच्चतर व्यक्ति के प्रति आदर-भाव दिखाए। यदि वह ऐसा नहीं करता और झूठा गर्व करता है, तो उसे क्षारकर्दम नरक में दण्ड सहना पड़ता है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.