ये—जो; तु—लेकिन; इह—इस जीवन में; वै—निस्सन्देह; भूतानि—जीवात्माओं को; उद्वेजयन्ति—वृथा ही पीड़ा पहुँचाते हैं; नरा:—मनुष्य; उल्बण-स्वभावा:—स्वभाव से क्रोधी; यथा—जिस प्रकार; दन्दशूका:—सर्प; ते—वे; अपि—भी; प्रेत्य—मरने के बाद; नरके—नरक में; दन्दशूक-आख्ये—दन्दशूक नामक; निपतन्ति—गिरते हैं; यत्र—जहाँ; नृप—हे राजन्; दन्दशूका:— सर्प; पञ्च-मुखा:—पाँच फणों वाले; सप्त-मुखा:—सात फण वाले; उपसृत्य—ऊपर पहुँच कर; ग्रसन्ति—खा जाते हैं; यथा— जिस तरह; बिलेशयान्—चूहों को ।.
अनुवाद
जो व्यक्ति इस जीवन में ईर्ष्यालु सर्पों के समान क्रोधी स्वभाव वाले अन्य जीवों को पीड़ा पहुँचाते हैं, वे मृत्यु के पश्चात् दन्दशूक नामक नरक में गिरते हैं। हे राजन्, इस नरक में पाँच या सात फण वाले सर्प हैं, जो इन पापात्माओं को उसी प्रकार खा जाते हैं जिस प्रकार चूहों को सर्प खाते हैं।
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