येषाम्—जिनमें से; खलु—निश्चय ही; महा-योगी—ईश्वर का महान् भक्त; भरत:—भरत; ज्येष्ठ:—सब से बड़ा; श्रेष्ठ-गुण:— उत्तम गुणों से सम्पन्न; आसीत्—था; येन—जिसके द्वारा; इदम्—यह; वर्षम्—लोक, देश; भारतम्—भारत; इति—इस प्रकार; व्यपदिशन्ति—लोग कहते हैं ।.
अनुवाद
ऋषभदेव के सौ पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र का नाम भरत था, जो श्रेष्ठ गुणों से सम्पन्न महान् भक्त था। उसी के सम्मान में इस लोक को भारतवर्ष कहते हैं।
तात्पर्य
भारतवर्ष नामक यह लोक पुण्य भूमि भी कहलाता है। आजके समय में भारत-भूमि या भारतवर्ष हिमालय पर्वत से लेकर कुमारी अन्तरीप तक फैला हुआ एक लघु भूखण्ड है। कभी-कभी इस प्रायद्वीप को पुण्य-भूमि कहा जाता है। श्री चैतन्य महाप्रभु ने इस भूमि के वासियों को विशेष महत्ता प्रदान की है (चैतन्यचरितामृत, आदि ९.४१)—
भारत-भूमिते हैल मनुष्य-जन्म यार।
जन्म सार्थक करि’ कर पर-उपकार ॥
“जिसने भी भारतवर्ष में मनुष्य रूप में जन्म लिया है उसे परोपकार द्वारा अपना जीवन सार्थक बना लेना चाहिए।” इस भूभाग के वासी अत्यन्त भाग्यशाली हैं। वे कृष्णभावनामृत आन्दोलन को स्वीकार करके अपने जन्म को पवित्र बना सकते हैं और भारतभूमि के बाहर जाकर सारे विश्व के कल्याण हेतु इसका उपदेश दे सकते हैं।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥