यस्यास्ति भक्तिर्भगवत्यकिञ्चना सर्वेर्गुणैस्तत्र समासते सुरा:। “जिसमें भगवान् के प्रति अविचल भक्ति होती है, उसमें देवताओं के समस्त सद्गुण पाये जाते हैं।” किन्तु जो अल्पज्ञ हैं वे भक्तिमार्ग का गलत अर्थ लगाते हैं, इसलिए वे यह आरोप लगाते हैं कि भक्ति उन लोगों के लिए है, जो अनुष्ठान नहीं सम्पन्न कर सकते या चिन्तन नहीं कर सकते। जैसाकि यहाँ पर सध्रीचीन: शब्द से पुष्टि हुई है भक्ति ही वह मार्ग है, जो उपयुक्त है, कर्मकाण्ड तथा ज्ञानकाण्ड के मार्ग नहीं। मायावादी भले ही सुशीला: साधव: (अच्छे आचरण वाले साधु पुरुष) हों, किन्तु इसमें सन्देह ही है कि वास्तव में वे प्रगति कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने भक्तिमार्ग स्वीकार नहीं किया है। दूसरी ओर, जो लोग आचार्यों के मार्ग का अनुसरण करते हैं वे सुशीला: तथा साधव: हैं। किन्तु इतना ही नहीं, उनका मार्ग अकुतोभय: है अर्थात् वह भय से रहित हैं। मनुष्य को चाहिए कि निर्भय होकर बारह महाजनों तथा उनकी परम्परा का अनुगमन करे और माया के पाश से मुक्त हो ले। |