न तेऽदृश्यन्त सञ्छन्ना: शरजालै: समन्तत: ।
पुङ्खानुपुङ्खपतितैर्ज्योतींषीव नभोघनै: ॥ २४ ॥
शब्दार्थ
न—नहीं; ते—वे (देवता); अदृश्यन्त—देखे गये; सञ्छन्ना:—पूर्णतया आच्छादित; शर-जालै:—बाणों के जाल से; समन्तत:—चारों ओर; पुङ्ख-अनुपुङ्ख—एक के बाद एक तीर; पतितै:—गिरने से; ज्योतींषि इव—आकाश में तारों के समान; नभ:-घनै:—घने बादलों के द्वारा ।.
अनुवाद
जिस प्रकार घने बादलों के आकाश में छा जाने के बाद तारे नहीं दिखाई पड़ते उसी प्रकार एक के बाद एक गिरने वाले बाणों के जाल से पूर्णतया आच्छादित हो जाने से देवतागण दिखाई नहीं पड़ रहे थे।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥