त्याग करना स्वीकार कर लिया, क्योंकि मृत्यु के पश्चात् इस शरीर को प्राय: कुत्ते तथा गीदड़ जैसे नीच पशु खा जाते हैं। दधीचि ने पंचतत्त्व निर्मित अपने स्थूल देह को पहले मूल पंचतत्त्वों में समाहित किया और अपनी आत्मा को श्रीभगवान् के चरणकमलों में स्थिर कर दिया। इस प्रकार उन्होंने स्थूल शरीर त्याग दिया। तब विश्वकर्मा की सहायता से देवताओं ने दधीचि की अस्थियों से वज्र तैयार करवाया। इस वज्र से सज्जित, वे हाथियों की पीठ पर सवार होकर लडऩे के लिए तैयार हो गये। सत्ययुग के अन्त तथा त्रेतायुग के प्रारम्भ में देवों तथा असुरों में भीषण युद्ध हुआ। देवों का तेज न सह सकने के कारण असुर युद्ध भूमि से भाग गये, किन्तु उनका नायक वृत्रासुर अकेला रह गया। उसने असुरों को भागते देखकर युद्धभूमि में लडऩे और मरने की महत्ता पर उपदेश दिया। जो युद्ध में जीतता है उसे भौतिक सम्पत्ति प्राप्त होती है, किन्तु युद्धभूमि में प्राण गँवाने पर उसे स्वर्गीय लोकों में वास मिलता है। दोनों ही प्रकार से योद्धा लाभ में रहता है। |