श्री-शुक: उवाच—श्रीशुकदेव गोस्वामी ने कहा; इति—इस प्रकार; ब्रुवाणौ—बोलते हुए; अन्योन्यम्—परस्पर; धर्म जिज्ञासया—परम धार्मिक नियम (भक्तियोग) जानने की इच्छा से; नृप—हे राजन्; युयुधाते—युद्ध किया; महा-वीर्यौ— दोनों वीर; इन्द्र—राजा इन्द्र; वृत्रौ—तथा वृत्रासुर ने; युधाम् पती—दोनों महान् सेनानायक ।.
अनुवाद
श्रीशुकदेव गोस्वामी ने कहा—वृत्रासुर तथा राजा इन्द्र ने युद्धभूमि में भी भक्तियोग के सम्बन्ध में बातें कीं और अपना कर्तव्य समझकर दोनों पुन: युद्ध में भिड़ गये। हे राजन्! दोनों ही बड़े योद्धा और समान रूप से शक्तिशाली थे।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥