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श्लोक |
स तु वृत्रस्य परिघं करं च करभोपमम् ।
चिच्छेद युगपद्देवो वज्रेण शतपर्वणा ॥ २५ ॥ |
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शब्दार्थ |
स:—उस (राजा इन्द्र) ने; तु—फिर भी; वृत्रस्य—वृत्रासुर का; परिघम्—लोहे का परिघ; करम्—उसका हाथ; च— तथा; करभ-उपमम्—हाथी के सूँड़ के समान बली; चिच्छेद—खण्ड खण्ड कर दिया; युगपत्—एकसाथ; देव:— श्रीइन्द्र; वज्रेण—वज्र से; शत-पर्वणा—एक सौ जोड़ों वाले ।. |
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अनुवाद |
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इन्द्र ने अपने शतपर्वन नामक वज्र से वृत्रासुर के परिघ तथा उसके बचे हुए हाथ को एक साथ खण्ड-खण्ड कर डाला। |
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