श्री-शुक: उवाच—श्रीशुकदेव गोस्वामी ने कहा; वृत्रे हते—वृत्रासुर के मारे जाने पर; त्रय: लोका:—तीनों लोक (उच्च, मध्य तथा अध:लोक); विना—के सिवा; शक्रेण—इन्द्र, जिसे शक्र भी कहते हैं; भूरि-द—हे अत्यन्त दानी महाराज परीक्षित; स-पाला:—विभिन्न लोकों के अधिपतियों सहित; हि—निस्सन्देह; अभवन्—हुआ; सद्य:—तुरन्त; विज्वरा:— मृत्यु के भय से रहित; निर्वृत—अत्यधिक प्रसन्न; इन्द्रिया:—जिसकी इन्द्रियाँ ।.
अनुवाद
श्रीशुकदेव गोस्वामी ने कहा—हे महादानी राजा परीक्षित! वृत्रासुर के वध से इन्द्र के अतिरिक्त तीनों लोकों के लोकपाल एवं समस्त निवासी तुरन्त ही प्रसन्न हुए और उनकी सब चिन्ताएँ जाती रहीं।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥