देहदेहिविभागोऽयमविवेककृत: पुरा ।
जातिव्यक्तिविभागोऽयं यथा वस्तुनि कल्पित: ॥ ८ ॥
शब्दार्थ
देह—इस शरीर का; देहि—तथा शरीर धारण करनेवाला; विभाग:—विभाजन; अयम्—यह; अविवेक—अविद्या से; कृत:—निर्मित; पुरा—अनादि काल से; जाति—वर्ण या जाति; व्यक्ति—तथा व्यक्ति का; विभाग:—विभाजन; अयम्— यह; यथा—जिस प्रकार; वस्तुनि—आदि वस्तु में; कल्पित:—कल्पना किया हुआ ।.
अनुवाद
राष्ट्रीयता तथा व्यक्तिगत सत्ता जैसे सामान्य तथा विशिष्ट विभाजन उन व्यक्तियों की कल्पनाएँ हैं, जो उन्नत ज्ञानी नहीं हैं।
तात्पर्य
वास्तव में दो प्रकार की शक्तियाँ हैं—भौतिक तथा आध्यात्मिक। वे दोनों नित्य हैं क्योंकि उनका उदय परमेश्वर अर्थात् परम सत्य से होता है। चूँकि व्यक्तिगत आत्मा अर्थात् जीवात्मा
चिरकाल से अपनी मूल सत्ता को भूल कर विस्मृति में कार्य करना चाहता है, इसलिए वह विभिन्न शरीर धारण करता हुआ राष्ट्रीयता, समुदाय, समाज, प्रजाति आदि अनेक विभागों से जाना जाता है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥