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श्लोक |
चित्रकेतुस्तु तां विद्यां यथा नारदभाषिताम् ।
धारयामास सप्ताहमब्भक्ष: सुसमाहित: ॥ २७ ॥ |
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शब्दार्थ |
चित्रकेतु:—राजा चित्रकेतु ने; तु—निस्सन्देह; ताम्—उस; विद्याम्—दिव्य ज्ञान को; यथा—जिस प्रकार; नारद भाषिताम्—परम साधु नारद द्वारा उपदेश दिया गया; धारयाम् आस—जाप किया; सप्त-अहम्—लगातार एक सप्ताह तक; अप्-भक्ष:—केवल जल पीकर; सु-समाहित:—अत्यन्त ध्यानपूर्वक ।. |
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अनुवाद |
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केवल जल पीकर उपवास करते हुए राजा चित्रकेतु ने नारद मुनि द्वारा दिये गये मंत्र का एक सप्ताह तक अत्यन्त ध्यानपूर्वक लगातार जप किया। |
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