इदं हि पुंसस्तपस: श्रुतस्य वा स्विष्टस्य सूक्तस्य च बुद्धिदत्तयो:। अविच्युतोऽर्थ: कविभिर्निरूपितो यदुत्तमश्लोकगुणामुवर्णनम् ॥ यदि किसी के पास वैज्ञानिक, दार्शनिक, राजनैतिक, आर्थिक अथवा कोई अन्य योग्यता है और ज्ञान-सिद्धि चाहता है, तो उसे चाहिए कि वह श्रेष्ठ कविता बनाकर भगवान् की स्तुति करे अथवा अपनी प्रतिभा को ईश्वर की सेवा में लगाए। चित्रकेतु ऐसा ही करना चाह रहे थे, किन्तु प्रेमाभिभूत होने के कारण वे ऐसा करने में असमर्थ थे। अत: स्तुति करने के पूर्व उन्हें देर तक रुके रहना पड़ा। |