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श्लोक |
एवं शुश्रूषितस्तात भगवान् कश्यप: स्त्रिया ।
प्रहस्य परमप्रीतो दितिमाहाभिनन्द्य च ॥ ३१ ॥ |
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शब्दार्थ |
एवम्—इस प्रकार; शुश्रूषित:—सेवा किये जाने पर; तात—हे प्रिय; भगवान्—परम शक्तिमान; कश्यप:—कश्यप मुनि ने; स्त्रिया—स्त्री के द्वारा; प्रहस्य—हँसकर; परम-प्रीत:—अत्यन्त प्रसन्न होकर; दितिम्—दिति से; आह—कहा; अभिनन्द्य—स्वीकृति देते हुए; च—भी ।. |
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अनुवाद |
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हे प्रिय! अपनी पत्नी दिति के विनम्र आचरण से अत्यधिक प्रसन्न होकर परम शक्तिशाली साधु पुरुष कश्यप हँस पड़े और इस प्रकार बोले। |
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